पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१७५

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आठवाँ प्रभाव नाप लिया, तब हम चौपद होकर यह छोटा काम क्यों करें, यह विचार कर जो घोड़े स्थिर रहते हैं (आकाश पर दौड़ नही लगाते ), और हमारे पिता समुद्र ही जब सारी पृथ्वी को घेरे हुए हैं तब हम उसे क्या घेरें, ऐसा विचार कर जो घोड़े दौड़ छोड़ कर सवार के छत्र के नीचे ही चक्राकार धूमा करते हैं और इतनी तेजी से घूमते हैं कि चाक को भी मोल ले लेते हैं (मात कर देते हैं )। जो घोड़े मन के से मित्र हैं (अति चंचल हैं ) और पवन देव के से बाहन है (अति बेग वान हैं ), नेत्रों को बांधने के लिये रस्सी रूप हैं (जिनको नेत्र एकटक देखा करते हैं ) और नेत्रों के प्रेम के स्थान हैं (अति सुंदर हैं जिन्हें नेत्र देखते रहना ही पसंद करते हैं ), जो समस्त शुभ लक्षणों से युक्त और अच्छी चाल वाले हैं, ऐसे घोड़े श्रीरामजी दीन जनों को बकसीस में देते हैं। (गज वर्णन) मूलमत्त, महाउत हाथ में, मंद चलनि, चलकर्ण 1 मुक्ताम्य, इम कुंभ शुभ, सुंदर, शूर, सुवर्ण ॥ २७ ॥ शब्दार्थ-महाउत हाथ में महावत के वश में रहते हैं । मुक्ता- मय = गजमुक्ता युक्त । इम= युवक हाथी । कुंभशुभ = जिनके कुंभ सुंदर हैं। चलकर्ण= जिनके कान सदा हिलते हैं ( जिस हाथी के कान चंचल न हो वह रोगी होगा) (यथा) मूल-जल के पगार, निजदल के सिंगार, अरि दल को बिगार करि, पर पुर पाएँ रौरि ।