पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

आठवाँ प्रभाव मस्तक पर चंदन की खोरें लगी हैं, और सूर्योदय समय के उदयाचल पर्वत के समान अति सुंदर हैं। (संग्राम वर्णन) मूल-सोना स्वन, सन्नाह, रज, साहस, शस्त्र प्रहार । अंग भंग, संघट्ट भट, अंध, कबंध अपार ॥ २६ ॥ शब्दार्थ--- -स्वन-शब्द, शोर । समाह-(सनाह ) कवच । रज-धूल वा क्षत्रीपन की शान। संघट्ट समूह, भीर । अंध=अंधकार । कबंध-सिरकटे धड़। मूल-केशव बरणहु युद्ध महँ, जोगिनि गण युत रुद्र । भूमि भयानक रुधिरमय, सरवर, सरित समुद्र ॥ ३०॥ शब्दार्थ-सरवर, सरित, समुद्र = रण भूमि का रूपक, तडाग, नदी, वा समुद्रवत् वर्णन करना चाहिये । (यथा) मूल-शोणित सलिल. नर बानर सलिलचर, गिरि हनुमंत, विष बिभीषण डायो है चवर पतःका बड़ी बाड़वाअनल सम. रोगरिपु जामवंत केशव बिचायो है। वाजि सुरबाजि, सुरगज से अनेक गज, भरत सबंधु इंदु अमृत निहायो है। सोहत सहित शेष रामचंद्र, कुश लव, जीति के समर सिंधु साँचहू सुधारयो है ॥ ३९ ॥ (नोट)- टीका के लिये देखिये 'केशवकौमुदी' का प्रकाश ३९ छ००९