पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१७८

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प्रिया-प्रकाश 1 (श्राखेट वर्णन) -अर्स, बहरी, आज बहु, चीते, स्वान, सचान । सहर, बहलिया, भिल्लयुत, नील निचोल विधान ॥३२॥ शब्दार्थ-सहर स्याहगोश नामक एक बन जंतु जो दौड़ धूप में बहुत वेगवान होता है। नील निचोल विधान= आखेटको को नीले कपड़े पहनने का विधान है (पुनः) मूल-बानर, बाघ, बराह, मृग, मीनादिक बन जंत । बध, बंधन,बेधन बरणि मृगया खल अनंत ।। ३३ ॥ शब्दार्थ बानर = वनमानुष । बध, बंधन, वेधन - किसी को भारना, किसी को बाँध लेना, किसी को अस्त्र शस्त्र से छेद देना। मृगया=शिकार । (यथा) मूल-~-तीतर, कपोत, पिक, केकी, कोक, पारावत, कुरर, कुलंग, कल हंस गहि लाये हैं। केशव शरभ. स्याह गोस, सिंह रोषगत, कूकरन पास शश शुकर गहाये हैं। मकर समूह वेधि, बांधि गजराज मृग, सुंदरी दरीनि भील भामिनीन भाये हैं। रीझि रीझि गुंजन के हार पहिराये देखो, काम जैसे राम के कुमार दोऊ आये हैं ॥३४॥ शब्दार्थ-कपोत = कबूतर। पिक कोयल। केकी भोर ।