पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१७९

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आठवाँ प्रभाव १६६ कोकः - चक्रवाका पारावत-परेवा, पिंडकी।कुररटिट्टिम। कुलंग = मुर्गा शरम-सिंह से भी ज़बरदस्त एक बन जंतु शशखरगोश। भावार्थ -सरल है। इसमें लव कुश का श्राखेट वर्णन है। ( मुल-खलक में खेल मैल, मनमथ मन ऐल, शैलजा के शैल गैल गैल प्रति रोक है। सेनानी के सटपट, चन्द्र चित चटपट, अति अति अटपट अंतक के ओक है। इन्द्र जू के अकबक, घाता जू के धकपक, शंभु जू के सकपक केशोदास को कहै । जब जब मृगया को रामके कुमार चढ़े, तब तब कोलाहल होत लोक लोक है ॥ ३५ ॥ शब्दार्थ-खैल भैल-खलबली। ऐलखलबली, परेशानी। शैलजा के शैल =कैलाश । सेनानी = षटमुख । सटपट = भय । चटपट=भागने की फुरती। अटपर=मुशकिल, कठिनाई। अंतक यमराज । ओक = निवास । अकबक-चकित होना। धकपक भया सकपक-घबराहट। भावार्थ-जब श्रीरामजी के कुमार लव कुश शिकार के लिये जाते हैं, लब सब लोकों में शोर मच जाता है। सारे संसार में खलबली पड़ जाती है ( कि न जाने अब क्या हो), काम के मन में परेशानी पैदा हो जाती है कि कहीं मेरी। सवारी के मकरराज को न बेधे, कैलाश की तो गलियां ही