पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१८०

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प्रिया-प्रकाश बंद हो जाती हैं (गौरी जी डर जाती हैं कि कहीं हाथी के धोखे गणेश को न बांध लें ) षटमुख सदपटा जाते हैं कि कहीं हमारा मयूर न मारा जाय, चंद्रदेव के चित्त में चटपट भागने की धुनि सवार होती है कि कहीं हमारा हिरल न मारा जाय, यमराज के लोक में तो बड़ी कठिनता उपस्थित होती है वे घबरा जाते हैं कि कहीं हमारा भैंसा न मारा जाय । इन्द्रदेव अपने हाथी के भय से अकबका जाते हैं, ब्रह्मा जी अपने हंस के डर से भयभीत होते हैं, शंभु जी भी सकपका जाते हैं कि कहीं हमारा नंदी न पकड़ लिया जाय । (जल केलि वर्णन) मूल--सर, सरोज, शुभ, शोम भनि, हिय सा प्रिय हिय झेलि। गहिबो गत भूषनन को, जलचर ज्यों जल केलि ॥३६॥ शब्दार्थ-शुभ पवित्रता । हिय सो प्रिय हिय झेलिप्रिय के हृदय से हृदय मिलाकर डुबकी लगाना । गहिबो गत भूषनन को-छूट कर गिरे हुप भूषनों को तह तक पहुंचने से पहले ही पकड़ लेना। ( यथा) मूल-एक दमयंती ऐसी हरै हँसि हंस बंस, एक हंसिनी सी बिसहार हिये रोहिये। भूषण गिरत एक लेत बूड़ि बीचि बीच, मीन गति लीन, हीन उपमान टोहिये ।। एकै मत के के कंठ लागि बुड़ि वृड़ि जात, जल देवता सी छग देवता विमोहिये।