पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१८६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

याठवाँ प्रभाव 399 मिटे भव के भ्रम, (पूर्वानुराग बिरह) मूल भूलि गयो सब सो रस रोक, रैनि विभातौ। को अपनो, पर को, पहिचान न, बानति नाहिनै सीतल ताता। नेकु ही में वृषभानु लली की भई सुन जाकी कही पर बाती। एकहि बेर न जानिये केशव काहे ते छूटि गये सुख सातौ ।४३॥ -रस-प्रम। रोष-क्रोधाभव के भ्रम-संसार के व्यवहार जो वास्तव में भ्रम रूप हैं। रैनि विभात =रात्रि दिन ( का ज्ञान ) नाहिनै नहीं । नेकुही में थोड़ी ही देर में। मई: - दशा वा गति । सु= वह ( सो)। न जाकी कही पर बात-जिसकी बात कहते नहीं बनती। एकहि बेर एक दारणी, एक ही साथ । सुख सातौ- सातो सुख अर्थात् । खान, पान, परिधान, पुनि, ज्ञान, मान, दुति अंग । सुभग सँयोग बियोग बिनु सातौ सुख प्रिय संग ॥ अर्थात् १ )-भोजन का सुख (२) पेय पदार्थों के पीने का सुख (३) वस्त्र भूषणादि पहनने का सुख (४) ज्ञान वा बुद्धिबिलाल का सुख (५) गान का सुख (६) शोमा का सुख । (७) प्रिय के अविच्छिन्न संयोग का सुख । भावार्थ-सब से प्रेम वा रोष करना भूल गया, सांसारिक व्यवहार और रात दिन का ज्ञान जाता रहा है, इसकी पह-