पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१९३

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प्रिया-प्रकाश 1 १-स्वभाव से उत्प्रेक्षा सक ९ वै प्रभाव में हैं। २--आक्षेप का वर्णन १० वे प्रभाव में ( इसी में बारहमासा है ) ३-क्रम से अपनुति तक ११ वें प्रभाव में वर्णित हैं। ४--उक्ति से युक्ति तक १२ वें प्रभाव में कहे हैं। ५-समाहित से परत तक १३ व प्रभाव में कहे गये हैं। ६-उपमा का वर्णन १४ वे प्रभाव में है -जमक का वर्णन १५ वें प्रभाव में है। -चित्रालंकार का वर्णन १६ वै प्रभाव में है। १-(स्वभावोक्ति) मूल-जाको जैसा रूप गुण कहिये ताही साज । तासों जानि स्वभाव सब कहि बरणत कविराज || भावार्थ-वर्ण्य वस्तु वा व्यक्ति का सहज रूप ( रंग प्राकृति) वा गुण वर्णन किया जाय उसे स्वभावोक्ति जानना चाहिये । (रूप वर्णन) मल-पीरी पीरी पाट की पिचौरी कटि केशोदास, पीरी पारी पानें पग पीरिये पनहियां । बड़े बड़े मोतिन की माला बड़े बड़े नैन, भृकुटी कुटिल नान्ही नान्ही बधनाहियां, बोलनि, चलनि; मृदु हँसनि चितौनि चारु । देखत ही बनै पै न कहत बनै हियां ।