पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१९४

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नयाँ प्रभाव सरजू के तौर सौर खेलें चारौ रघुबीर, हाथ द्वै द्वै तीर राती रातिथै धनुहियां ॥ ४ ॥ शब्दार्थ-पाट की पिछौरी-पीतांबर। पार्ग-पगड़ियां। बघनाहियां = बाध के नख । हियां यहां । रातीलाल । भावार्थ-सरल और स्पष्ट है। (गुण वर्णन-शोभा सौन्दर्य) मूल-गोरे गात, पातरी, न लेोचन समात मुख, उर उरजातन की बात अवरोहिये । हँसति कहत बात, फूल से भरत जात, ओंठ अवदात राती रेख मन मोहिये । स्यामल कपूरधूर की ओदैनी ओढ़े, धूरि ऐसी लागी केशो उपमा न टोहिये । काम ही की दुलही सी काके कुल उलही सु, लहलही ललित लता सी लोल सोहिये ॥१०॥ शब्दार्थ-पातरी= कृशांगी। दुवली (स्थूल नहीं)।न लोचन समात मुख = अर्थात् बहुत बड़े। उरजात - कुच । अवगे- हिथे-चित्रित कर लीजिये। अधदात गौरवर्ण के। राती रेख-लाल रेखा (पान की) स्यामल कुछ कुछ श्याम रंग की। कसूरधुर = एक प्रकार का बस्न विशेष । श्रोनी उपरना, श्रीदनी । उड़ि धूरि ऐसी लागी-वह कपड़ा इतना बारीक है कि जान पाता है कि मानो शरीर पर कपड़ा है ही नहीं केवल कपूर की धूल लगी है। उपमा न टोहिये-जिसकी