पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१९६

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भवा प्रभाव काहे को सिंगार कै बिगारति है मेरी आली, तेरे अंग विनाही सिंगार के सिंगारे हैं ॥ १२ ॥ शब्दार्थ-एन-(एण) हिरन । मोहि मारे है = मोहित करके मार डाले हैं। भावार्थ-तेरी मुखवास सहज ही ऐसी है जैसे कपूर और पान खाये मुख की होती है। तेरे अंड लाल कांति के और सुधा सन मोठे हैं। तेरे चित्रित कपोलो और चशल नेत्रों ने अपनी निर्भल झलक और चमक से सुकुर और हिरन को मोहित करके मार डाला है। भौहें ऐसी ही हैं कि बनाये से भी नहीं बनती, प्रांखें सहज ही आंजी सी है जिन्हें देख कर कृष्ण भी हार मान गये । हे भाली! तू क्यों अपने अंगों को सिंगार करके बिगाड़ती है, तेरे में हो बिना सिंगारे ही सिंगारे हैं। {पुनः) मूल कारण कौनहु आनते, कारज होय जु सिद्ध । जानौ अन्य विभावना, कारण छोड़ि प्रसिद्ध ॥ १३ ॥ भावार्थ-दूसरे प्रकार की विभावना वह है जहाँ ऐसा वर्णन हो कि जिसका जो कारण है उसे छोड़ किसी अन्य कारण से कार्य सिद्ध हो। (यथा) मूल-नेकहू काहू नवाई न बानी नवाये बिनाही सु वक्र भई हैं । लोचन श्री विझुकाये बिना विझुकी सी, रँगे बिनु राग मई है ॥ केशव कौन की दीनी कही यह चंदमुखी गति मंद लई है। छोली न, बैही गई कटि छीन सु यौवन की यह युक्ति नई है ।।१४