पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२०२

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नयाँ प्रभाव भावार्थ-( सखी बचन नायिका प्रति ) तेरे नेत्र ऐसे हैं कि श्राप तो सफेद और काले हैं, पर कृष्ण की ओर देख कर कृष्ण के चित्त को अनुराग के रंग से रंग देते हैं ( अनुराग का रंग लाल माना गया है)। कान हीन होने पर भी बात सुनते हैं, जीभ हीन होने पर भी रस की बार्ता करते हैं। मैं जानती नहीं, इसी से पूंछती हूं कि ये तेरे नेत्र हैं या कोई अंतर्यामी पुरुष हैं, ये पैरहीन होने पर भी दूर तक दौड़ते हैं, जिससे मन के कोने में छिपी हुई मति भी इनको भादम हो जाती है। (विशेष)-इस छंद के प्रथम चरण में विषमालंकार और शेष तीन चरणों में विभावनालंकार दरसता है, पर विचार करने से ये अलंकार ठहरते नहीं। क्योंकि प्रथम चरण में "रंगराते से तात्पर्य प्रम से है न कि वास्तविक कोई रंग जो सफेद और काले रंगों के मिलने से बनता है। शेष तीन चरणों में कानों, जीभ, तथा चरणों के संबंध में जो कहा गया है, वह अनिवार्य कारण कार्य संबंध में नहीं ठहरता--जरूरी नहीं है कि जिसके कान हों वह सब कुछ सुनही ले, जिसके जीभ हो वह बोला ही करे, जिसके पैर 'वह दौड़के करे। विभाधना में कारण कार्य का संबंध अनिवार्य होना चाहिये, ऐसा मत केशव का है। पर हाल के प्राचार्य तो इस छंद में विषम और विभावना ही मानेंगे। हमें भी संदेह है कि क्या मानें । पर चूंकि पुस्तक में यह छंद 'विरोध' के उदाहरण में दिया है, अतः कोई चारा नहीं। (नोट)-हमारा अनुमान है कि यह छंद प्रथम विभावना का उदाहरण है। लेखकों की असावधानी से यह छंद यहां लिस गया है।