पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२०३

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प्रिया-प्रकाश ( विरोधाभास लक्षण) मूल-बरनत लगै बिरोध सो, अर्थ सबै अविरोध । प्रगट विरोधाभास यह, समझत सबै सुबोध ॥ २२ ॥ भावार्थ-विरोध सा भासै पर अर्थ करने पर विरोध न रहै, बही विरोधाभास कहलाता है। (यथा) मूल-परम पुरुष कुपुरुष सँग शोभियत, दिन दानशील पै कुदान ही सो रति हैं। सूर कुल कलश पै राहु को रहत सुख, साधु कहैं साधु, परदार प्रिय अति हैं। अकर कहावत धनुष घरे देखियत, परम कृपाल पै कृपान कर पति हैं । विद्यमान लोचन दै, हीन बाम लोचन सों, केशोराय राजा राम अदभुत गति हैं ॥२३॥ शब्दार्थ-कुपुरुष = (१) बुरे लोग (२) पृथ्वी के लोग । कुदान =(१) मुरादान (२) पृथ्वीदान । राष्ट्र - (१) राहु- ग्रह (२) रास्ता । परदार निब = (१) पराई स्त्री पर प्यार करने वाले (२) सर्वोत्तम दारा ( लक्ष्मी) के मिय। अकर = हस्तहीन । पान कर =(१) हाथ में तलवार रखने वाले (२) जो कृपा न करे । हीन बामलोचन--(१)जिसकी याई अांख न हो (२) बामलोचना अर्थात् कुलटा स्त्री से हीन।