पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२०७

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प्रिया-प्रकाश (ब्याख्या)-लोक रक्षक श्री कृपया को बिना हथियार और सेना अथवा विना मंत्र यंत्र किये ही अबला, गवारी गोपिका एक ही नजर से जीत लेती हैं। कारण काफी नहीं पर कार्य की सिद्धि पूर्ण है। (पुनः) मूल-ब्रज की कुमारिका वै लीने शुक शारिका, पढा कोक कारिकान केशव सबै निबाहि । गोरी गोरी, भोरी भोरी, थोरी थोरी वैस फिरि , देवता सी दौरि दौरि आई चोरा चोरी चाहि ।। बिन गुन, तेरी आन, भृकुटी कमान तानि, कुटिल कटाक्ष बान, यह अचरज अाहि । एते मान ढीठ, ईठ मेरे को अदीठ मन, पीठ दैदै मारती पै चूकती न कोऊ ताहि ॥२८॥ शब्दार्थ-कोक कारिका = कोक शास्त्र की परिभाषाएं । सबै निवाहि = पूर्ण रीति से अर्थ समझा कर। चोरा चोरी- लुक छिपकर । चाहि माई देख आई। बिनु गुन= बिना प्रत्यंचा की। तेरी आन =तेरी शपथ है, तेरो कसम । कुटिल - टेढा । एते मान ढीठ = इतनी डीठ हैं, इतनी अभ्यस्त हैं। ईट मेरे को मेरे इष्ट (मित्र) का । अदीठ मन = मन जो अदृष्ट है। पीठ दै दै-पीछे से (निशाने की ओर पीठ किये हुए)। -ब्रज की कुमारियां (श्रनव्याही बालिकाएं) शुक शारिकाओं को लिये कोक शास्त्र की परिभाषाएं पूर्ण अर्थ