पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२०९

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२०० प्रिया-प्रकाश पहले जो रेखाएं बनाते हैं उसको 'लिखना' कहते हैं। जानत छांह न घाम = सरदी गरमी का ज्ञान नहीं है। अर्थ = कविता का अर्थ लगाना । सुनारी सोनार का काम । बैदई =बैद्य का काम । पतिराम = पतिराम नामक एक सोनार विशेष । (नोट)-प्रवाद है कि पतिराम' नामक एक सोनार केशव दास के पड़ोस में रहता था। वह सुशिक्षित तो न था पर केशव की संगति से उसे ऐसी शक्ति प्राप्त हो गई थी कि कठिन से कठिन कविता का अर्थ लगा देता था। अपने काम में भी साधरण ही कारीगर था। जड़ी बूटी द्वारा वैद्य का भी काम करता था । एक बार उसने केशव से निवेदन किया कि महाराज ! किसी प्रसंग में कुछ कह कर राजा इन्द्रजीत जी तथा प्रवीणराय की तरह अपने कवित्व द्वारा मेरा नाम भी अमर कर दीजिये तो मैं आपका कृतज्ञ हूंगा। केशव ने एक- मस्तु कहकर उसी समय यह दोहा कहा था और समय पाकर इस अलंकार के उदाहरण में उस दोहे को यहां रख दिया। आगे भी प्रभाव १२ में छंद नं० १९ देखो। भावार्थ-पतिराम सोनार को न कुछ पढ़ना आता है,न सोनारी के काम में नकासी की रेखा बनाना आता है, न सरदी गरमी का यथार्थ ज्ञान है, पर कविता का अर्थ करना, सोनारी करना और बैदई करना पतिराम खूब जानता है। (ब्याख्या)-अपूर्ण साधनकारण से पूर्ण सिद्धि हुई। है-( उत्प्रेक्षालंकार) मूल - केशव औरै बस्तु में और कीजिये तर्क । उत्प्रेक्षा तासों कहैं जिनको बुद्धि संपर्क ॥ ३०॥ भावार्थ---और बस्तु में और वस्तु की भावना करने को बुद्धि- मान लोग उस्मेशा कहते हैं।