पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२१०

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नवा प्रभाव (यथा) मूल-हर को धनुष तान्यो, रावण को बंश तान्यो, लंक तोरी, तोरै जैसे वृद्ध बंश बात हैं। शत्रुन के सेल शूल फूल तुल सहे राम, सुनि केशोराय की सौं हिये हहरात हैं । कामतीर हू ते तिक्ष तारे तरुणीन हू के, कागि लागि उचटि परत ऐसे गात हैं। मेरे जान जानकी तू जानति है जान कछु , देखत ही तेरे नैन मैन से वै जात हैं ॥ ३१ ॥ शब्दार्थ-बंश= परिवार । वंश = रीढ़ की हड्डी । बात-बायु । फूलतूल -फूल तुल्य, पुष्प समान । सौ = शपथ। तिक्ष- तीक्षण । तारे नेत्र पुतली। उचटि परत उछल कर पीछे लौटते हैं । जान टोना, जादू । मैन = (सं० मदन ) मोम । भावार्थ-श्रीरामजी ऐसे बली हैं जिन्होंने शिव का धनुष तोड़ा, रावण के बंश को निःशेष कर दिया, और लंका तोरी जैले वृद्ध मनुष्यों की रीढ़ को बातरोग तोड़ डालता है ( टेढ़ी कर देता है)। बैरियों के भाले और त्रिशूल पुष्प समान सहे जिनका हाल सुनकर, ईश्वर की शपथ, हृदय हहर जाते हैं ( ऐसे कठोर अंग हैं )। युवती नारियों के नेत्र तारे जो काम- बाण से भी अधिक तीक्षण हैं राम के शरीर पर लग लग कर उचट जाते हैं ( कुछ प्रभाव नहीं कर पाते), पर हे जानकी ! मेरी सम्मति में ऐसा आता है कि तू कुछ टोना जानती है जिससे तेरे नेत्र देखते ही ( वही कठोर शरीर) मोम सा हो