पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२१२

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लवाँ प्रभाव २०३ झलक भी नहीं है, न पृथ्वी की छाया है, न चंद्रमा में छेद है (जिसमें होकर श्राकाश की नीलिमा दिखाई देती हो)। हे कृपानिधान ! जिस लगे हुए दाग को आप देख रहे हैं उसके संबंध में मुझ बनचारी (मूढ़) का वचन सत्य मानिये, मेरे जान में तो यह दिग्गजों और दिगपालों के कंठ से मिलने वाली श्रापको कीर्ति की ईर्षा से पैदा हुभा दुःख ही है-(आपकी कीर्ति से चंद्रमा को दुःख हुआ है, वही है) (ब्याख्या) चंद्रमा की श्यामता पर ईर्षाजनित दुःख की भावना की गई है। "मेरेजान बाचक हैं। (नोट)-इस प्रभाव में ६ अलंकारों का वर्णन है। (नयां प्रभाव समास)