पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२१३

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दसवां प्रभाव (इसमें केवल एक अलंकार का वर्णन है) ७-(आक्षेपालंकार) मूल-कारज के प्रारंभ ही, जहँ कीजत प्रतिषेध । आक्षेपक तासे) कहत, बहु विधि बरनि सुमेध ॥ १॥ शब्दार्थ-प्रतिषेध =बरजना । सुमेध-सुबुद्धि वाले। मूल-तीना काल बखानिये, भावी, भयो, जु होइ । कविकुल कोऊ कहत हैं यहि प्रतिषेधहि दोइ ॥२॥ भावार्थ-केशव का मत है कि तीनो कालों (भावी, भूत, वर्त- मान) में प्रतिषेध का वर्णन हो सकता है, परंतु यह भी बतलाते हैं कि कोई कोई प्राचार्य केवल दोही कालो ( भावी और वर्तमान ) का प्रतिषेध वर्णन करते हैं । (भूत काल प्रतिषेध) मूल-बरज्यों हौं हरि, त्रिपुरहर, बारक करि भूमंग । सुनो मदन मोहनि ! मदन हैही गयो अनंग ॥ ३ ॥ शब्दार्थ-हरि-कामदेव । त्रिपुरहर= निपुर को नाश करले बाले । मदन मोहनी = रति । अनंग-अंगहीन, भस्मीभूत । भावार्थ-( रति की कोई सखी रति प्रति कहती है कि ) मैंने कामदेव को मना किया था (कि) त्रिपुर मर्दन महादेव से बैर मत करो, पर वे नहीं माने और हे मदन मोहनी ! ( रति)