पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२१४

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दसवाँ प्रभाव शिव के तलक टेढ़ी भौहँ होते ही, मदन जी भस्मीभूत हो गये। (वरज्यों-यह भूत कालिक क्रिया है)। (भावी प्रतिषेध) मूल-ताते गौरि न कीजिये कौनहु बिधेि भ्रूभंग । को जानै बै है कहा प्राण नाथ के अंग ॥ ४ ॥ शब्दार्थ-ताते गरम होकर, क्रुद्ध होकर । भूमंग = क्रोध सूचक भौहों का टेढा होना । प्राण नाथ = शिव । भावार्थ-(पार्वती ने प्रणय मान किया है, सखी समझाती है कि ) हे गौरी! त्रुद्ध होकर किसी प्रकार भौहें न तानो, न जान इस क्रोध से शिव के अंग पर क्या बीते। ( कहा हैहै यह भविष्य सूचक क्रिया है) (वर्तमान प्रतिष) मूल-कोबिद ! कपट नकारशर लगत न तजहि उधाह । प्रतिपल नूतन नेह को पहिरै नाह सनाह ॥ ५ ॥ शब्दार्थ नकारशर = नाहीं रूपी शर । न तजहि =न छोड़ो। सनाह कवच। ( नोट )-रति समय नायिका नाही नाहीं करती है, नायक कुछ सकुचाता है, तव सखी उत्तेजित करती है-(न तजहि = वर्तमान कालिक क्रिया है) भावार्थ--हे कोविद ! (नायक) इसके नाहीं नाहीं रूपी शर लगने से हतोत्साह मत हो, क्योंकि नायक तो प्रतिपल नवीन नेह का कवच पहनते हैं ( नाही करने से हतोत्साह मत हो, नवीन नेह प्रगट करते हुये तुम अपना काम जारी रखो, क्योंकि तुम तो कोविद हो, नवीन प्रेममय बातों से राज़ी कर लो) --