पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२१६

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दसवाँ प्रभाव छांडत "धाइवो आगे चले जाने के लिये ये प्राण तुम्हें कैसे छोड़ेंगे। हाथ लीन्हे फिरे सदैव अति प्रसन्न रखा! भावार्थ-(परदेस जाते हुए नायक से कोई स्त्री, उसे रोकने की गरज से, पूर्व प्रेम का वर्णन करती है ) ज्यों ज्यों में अधिकता से मना किया करती थी कि हे प्राणनाथ मेरे प्राणों को श्राप अंग न लगाओ, इससे आगे दुःख होगा, न्यो त्यों हँस हँसकर आप मेरे प्राणों को सिर हृदय और आंखो पर खेलाते रहे। एक पलमात्र के लिये साथ से अलग न किया सदैव मेरे प्राणों को हाथही में लिये रहे ( अत्यन्त प्रसन्न रखा) इसकी मैं कहां तक प्रशंसा करू। अब उन प्राणों को छोड़ कर तुम परदेस जाने कहते हो, सो ये तुम्हें आगे कैसे जाने देंगे, ये तो तुमसे आगे उठ भागेंगे। (इस में पूर्व प्रेम वर्मन 'नायक के गनन को रोकने की चेष्टा की गई है) २-(अधैर्याक्षेत) मूल-प्रेम भंग बच सुनत ही, उपजत सात्विक भाव । कहत अधीरज को सुकवि, यह आक्षेप सुभाव ॥६॥ भावार्थ के वचन सुनकर जहां सात्विक भाव (श्रातू, कंध, स्वरभंगादि ) पैदा हो, उसे सुकवि जन अधे- संक्षेप कहते हैं। (यथा) मूल-केशव प्रात बड़ेही. बिदा कहूँ आये प्रिया पहँ नेह नहेरी। श्राऊ महाजन वै जु कहो, हसि बोल द्वै एसे बनाय कहे री