पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२१७

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२०८ प्रिया-प्रकाश को प्रतिउत्तर देय सखी सुनिलोल विलोचन यो उमहे री। सौहै ककै हरि हारि रहे अधरातिक लौं असुवाँ न रहे री?. शब्दार्थ-केशव = कृष्ण । प्रात बड़ेही बड़े प्रातःकाल । नेह नहे प्रेम पूर्ण । उमहे - उमड़े। सौह शपथ । ककै = करके। न रहे-न थमे। भावार्थ-सरल और स्पष्ट है। { व्याख्या) बोल बनाय कहे (वास्तव में जाने का इरादा न था) प्रतिउत्तर न दे सकी (स्वरभंग हुआ), बांसू तो प्रत्यक्ष ही हैं। आधी रात तक रोई (प्रातःकाल से अर्द्धरात्रि तक नायक न जा सका गमन रुक गया)। रोने से अधीरता प्रगट ही है। ३-(धैर्याक्षेप) मूल-कारन करि कहिये बचन, काज निवारण अर्थ । धीरज को श्राक्षेप यह, बरणत बुद्धि समर्थ ॥११॥ भावार्थ-दुःखमय ब्यंग युक्त विधि क्रिया में बचन कहै, पर उसमें निषेध का भाव हो। (यथा) मूल-चलत चलत दिन बहुत ब्यतीत भये, सकुचत कत चित चलत चलाये ही । बाव हैं ते कही कहा नाहिनै मिलत आनि, जानि यह छांडो मोह बढ़त बढ़ाये हो । मेरी सौं तुमहिं हरि राहियो सुखहिं सुख, मोहू है तिहारी सौह रहौं सुख पाये ही।