पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२१८

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दस प्रमाव चलेही बनत जो तो चलिये चतुर पीय, सोबत ही जैयो छोड़ि जामौं गो हौ प्राथे ही॥१२॥ शब्दार्थ-चित चलत चलाये ही-चित हटाने से ही हटता है। भावार्थ-विदेश जाने की चर्चा करते बहुत दिन हो गये, अच्छा तो अब संकोच किस बात का है (जाइये) क्योंकि चित्त तो हटाने ही से हटता है। जो विदेश जाते हैं क्या वे फिर कर नहीं पा मिलते ? ऐसा समझ कर मोह छोड़ो मोह सो बढ़ाये ही से बढ़ता है। हे हरि ! तुम्हें मेरी ही शपथ है, तुमः विदेश में खूब श्रानन्द से रहना ( मेरी चिन्ता में न रहना) और मैं भी तुम्हारी शपथ करके कहती हूं कि मैं सुखी ही रहूंगी। अगर जाते ही से काम बनता है, तो हे चतुर प्रिय- तम । जाइये, मगर ऐसा कीजियेगा कि मुझे सोती हुई छोड़ जाइयेगा, और मैं फिर तभी जागूगी जब आप प्रा। व्याख्या)-विधि क्रिया में जाने की भावा देती है,पर तात्पर्क मना करने का है। ४-(संशयाक्षेप) मूल-उपजाये संदेह कछु, उपजत काज विशेष । यह संशय आक्षेप कहि बरणत जिनहिं प्रबो॥१३॥ भावार्थ-कोई संदेह उत्पन्न कराकर कार्यारंभ में बाधा दी जाया वह संशयाक्षेप है। (यथा) मूल-गुनन दलित, कल सुस्न फलित गाय, ललिता ललित. गीत नवस रचाइहै ।।