पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२२२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२२४
प्रिया-प्रकाश


भावार्थ- कार्यारंभ में बाधा डालने के लिये किसी ऐसे उपाय की शर्त लगाई जाय जिसका पूरा होना असंभव हो। इसे उपायाक्षेप कहते हैं। (यथा) माको सबै ब्रज की युवती हर, गौरि समान सोहागिनि जाने । एसी को गोपी गोपाल तुम्है बिन गोकुल में बसिबो उर आने । मूरति मेरी अदीठ के ईठ चलौ, कै रहौ जो कछू मन माने । प्रमिान छमिनि आदि दै केशव, कोऊन मोहिं कहू पहिचान।।२२॥ शब्दार्थ-हर गौरि समान =शिव पार्वती बत् अग रूप । मूरति "चलो = हे मित्र यदि जाना है तो मेरी मूर्ति को अदृष्ट करके जाओ अर्थात् ऐसा करके जाओ जिसमें मुझे कोई देख न सके, अर्थात् लोपांजन देकर या मारकर और जलाकर, क्योंकि तुम्हारे बिना यहां रहते मुझे लोग देखेंगे तो मेरी निंदा होगी और वह निंदा मैं सह न सकूँगी। प्रमिनी = मुझपर प्रेम करने वाली सखियां । छेमिनि = मेरी छम चाहने वाली परिवार की गुरु नारियां। भावार्थ-हे प्रियतम तुम विदेश जाना चाहते हो, और मेरी दशा यह है कि मुझे सब ब्रज युवतियां श्रापकी श्रागिनी समझती हैं, और ऐसी कौन गोपी है जो आपके बिना इस गोकुल में रहना पसंद करे, अतः उपाय यह है कि मेरी मूर्ति को अदृष्ट करके (चाहे लोपांजन से चाहे अन्य किसी प्रकार) जैसा आप का जी चाहै वैसा कीजिये, मनमाने रहिये मनमाने जाइये । पर मुझे इस प्रकार लोप कीजियेगा कि मेरी प्रेममय