पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२२३

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दसवाँ प्रभाव सखियां और कुशलाकाक्षिणी गुरुत्रियां (सांस ननंद इत्यादि) इत्यादि भी मुझे न देख सकें। (व्याख्या)-नायिका, जाने का ऐसा उपाय बताती है जो नायक का किया नहीं हो सकता। तात्पर्य यह है कि न वह उपाय हो सकेगा न नायक जायेगा, गमन रुक जायगा । इसी को उयायाक्षेप कहते हैं। (नोट)लोपांजन एक प्रकार का अंजन है। जो इसे प्रांख में लगा लेता है वह सबकी आंखों से अद्दष्ट हो जाता है। वह सबको देखता है, पर उसे कोई नहीं देखता। ९-(शिक्षाक्षेप) मूल सुख ही सुख जहँ राखिय, सिखही सिख सुखदानि । शिक्षाक्षेप कह्यौ बराणि, छप्पय बारह बानि ॥२३॥ शब्दाथ-सुख ही सुख- तसल्ली दे दे कर । सिखही लिख- समझा बुझाकर। सुखदानि = मियतम । वानि = ( वर्ण) तरह, प्रकार। भावार्थ-तसल्ली दे दे कर, समझा बुझा कर अपने प्रियतम को कार्यारंभ से रोके, वही शिक्षाक्षेप है। इसपर केशव ने बारह मासा के ढंग पर बारह छप्पय कहे हैं। (चैत्र वर्णन )-छप्पय । मूल-फूली लतिका ललित तरुणितर, फूले तरुवर । फूली सरिता सुभग, सरस फूले सब सरवर ।। फूलीं कामिनि, कामरूप करि कंतनि पूजहिं । शुक्र सारो कुल हँसै, फूलि कोकिल कल कूजहिं ॥