पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२२४

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प्रिया-प्रकाश कहि केशव ऐसी फूल महँ फूलहिँ शुल न लाइये। पिय आयु चलन की का चली चित्त न चैत चलाइये ॥२४॥ शब्दार्थ-तरुणि तर = पूर्ण युवती होकर । फूल = श्रानंद । घिय आपु चलन की का चाली = क्या चर्चा चलाते हैं, अपने जाने की क्या चर्चा चलाते हैं। फूलहिं शूल न लाइये = आनंद में कांटे न चुभाइये, रंग में भंग न करो। भावार्थ-सरल और स्पष्ट ही है। ( व्याख्या)-चैत की कामोद्दीपक सामग्री का वर्णन सुनाकर नायक को समझा बुझाकर उसका गमन रोक दिया। इसी प्रकार बारहो महीनों का तात्पर्य समझिये। (बैशाष वर्णन) छप्पय । मूल- केशवदास अकाश अवनि बासित सुबास करि । बहत पवन गति मंद गात मकरंद-बूंद घरि ॥ दिसि विदिसनि छाब लागि, भाग पूरित पराग बर । होत गंध ही अंध वौर मारा विदेशि नर ।। सुनि सुखद, सुखद सिख सीखियत, रति सिखई सुख-साख मैं। बर-बिरहिन बधत विशेष करि काम विशिष बैशाख मैं ।। २५ ।। शब्दार्थ-छबिलागि=षि लिपटी हुई है, शोभा युक्त हैं। =दिशाये । बौरबाबले, पागल । विदेशि= प्रवासी। सुखद सुखदायक अर्थात् नायक-(संबोधन में है)। सुखद सिख = सुखदाई शिक्षा। सीखियत= सीख.. लेनी