पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२२७

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निवासी। दसवाँ प्रभाव (आपराढ़ वर्णन )-अप्पर । भूल--प्रवन चक्क परचड चलत चहुँ ओर चपल गति । • भवन भामिनी तजत भँवति मानहु तिनकी मति ।। संन्यासी यहि मास होत इक प्रासन बासी। मनुजन की को कहै भये पक्षियो यहि समय सेज सेचन लियो श्रीहि साथ श्रीनाथ हूँ। कहि केशवदास अबाड चल मैं न सुन्यों श्रुतिमाथ हू ॥२७ भावार्थ-अषाढ़ में जो प्रचंड ववंडर वपलगति से चारो ओर चलते हैं, वे ऐसे मालूम होते हैं मानो उनकी मति चक्कर लगाती फिरती है जिन्होंने इस मास में अपने घरे में अपनी स्त्रियां छोड़ कर विदेश की गमन किया है । सन्यासी भी इस मास से एक स्थान बासी होते हैं। मनुष्यों की कौन को, पक्षी भी इस मास में एक स्थान में रहने का प्रबन्ध करते हैं (बहुत से यक्षी धोसले बनाने हैं)। इसी मास में विष्णु महराज लक्ष्मी को साथ लेकर सेज पर सोना अस्खलि- यार करते हैं। अषाढ माय में तो मैं मे वेद में भी विदेश गमन नही सुना । ( अतः आप कैसे जाय।) (सावन वर्णन) मूल-केशव सरिता सकल मिलत सागर मन मोहैं। ललित लता लपटात सरुन तन तरवर साह ।। रुचि चपला मिलि मेघ चपल चमकत चहुँ ओरन मन भावन कहूँ भेटि , भूमि कूजत मिस मोरन ।