पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२२८

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२२० प्रिया-प्रकाश यहि रीति रमन रमनी सकल लागे रमन रमावनै। पिय गमन करन की को कहै गमन सुनिय नहिं सावनै॥२८॥ शब्दार्थ-सन्धिः चमक दमक। मन भावन...मोरन-पृथ्वी अपने मनभावनः ( जल ) को सेंटकर मोरों-मिस कूजती है। रमनी रमन = स्त्री पुरुषः। रमन रमाउन लागे= रमन लगे और रमाने लगे (मिलने जुलने लगे, समागम करने लगे। गमन = विदेश गमन । गमन द्विरागमन, गौना। (हिन्दू श्राचार के अनुसार सावन में द्विरागमन नहीं होते) भावार्थ-सरल है। (भादौ वर्णन) मूल-घोरत घन चहुँ ओर घोष निपनि मंडहिं । धाराधर धरि धरनि मुसलधारनि जल. छंडहिं॥ मिलीगन भकार पवन झुकि झुकि झकझोरत । बाघ सिंह गुंजरत पुंज कुंजर तर तोरत ।। निशिदिन विशेष निःशेष मिटि जात,सु ओली ओड़िये । निजदेश पियूष बिदेश बिष भादौँ भवन न छोड़िये ॥२६॥ शब्दार्थ-घोरत गरजते हैं। घोष = शब्द ( झिल्ली दादुर आदि का ) निर्घोष = बादल का शब्द । धरिधरणि = पृथ्वी को पकड़े कर (अति निकट आकर)। विशेष = विशेषता । निःशेष मिटि जात=बिल्कुल मिटि जाती है । ओली प्रोड़ना= अंचल फैलाकर भिक्षा मांगना । निज देश......विष-(चाँकि 'पीयूष' और 'विष दोनों नाम जल के हैं अतम्भाव यह है कि) निज देश में रहै तो पानी अमृतवत है, विदेश में वही जल विषवत है । निशदिन विशेष निःशेष मिटिजात-रात दिन