पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२२९

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दसधा प्रभाव २२१ की विशेषता बिल्कुल मिट जाती है, रात दिन का भेद मिट जाता है। भावार्थ-सरल और स्पष्ट । (आश्विन वर्णन) मूल-प्रथम पिंड हित प्रगट पितर पावन घर आ । नव दुर्गा नर पूजि स्वर्ग अपवर्गहु पावै ॥ छत्रनि दै छितिपतिहु लेत भुव लै सँग पंडित । केशवदास अकास अमल, जल जलजनि मंडित ॥ रमणीय रजनि रजनीश रुचि रमारमन रासरति । कल केलि कलपतरु कार महँ कत न करहु बिदेश मति ॥३०॥ शब्दार्थ-लेत भुव ले सँग पंड़ित = पंडित (पुरोहित ) को संग लेकर निज राज्य की पृथ्वी का पूजन करते हैं अर्थात् निज पृथ्वी का सम्मान करते हैं । रजनीश रुचि-चंद्रमा की चांदनी से ! रमारमन = कृष्ण जा| केलि कल्प तरु= केलिकी समस्त कामनाएं पूर्ण करने को कल्प वृक्षवत् ( यह 'कार' का विशेषण है)। जल जलजनि मंडित= जलाशय कमलों से मंडित हो जाते हैं। रमणीय रजनि रजनीश रुचि चंद्रमा की चांदनी से रात्रि सुन्दर हो जाती है। रमा रमन हू रास रति =कृष्ण को भी रास में प्रीति होती है। भावार्थ -सरल और स्पष्ट है। (कातिक बर्णन) मूल-बन, उपवन, जल, थल, अकास दीसंत दीप गन । सुखही सुख दिनरात जुवा खेलत दंपति जन ।