पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२३१

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दसवा प्रभाव = कल हल और कल हंसिनी मधुर सुर से कूजती है ( प्रवाद है कि इसी मास में हंसिनी गर्भवती होती है)। नरम-सुखद । करम करम यह पाय ऋतु-अच्छे कर्मों की करतूत से यह ऋतु पाकर ! मारग चितुन करिमार्ग चलने को मन न करो। भावार्थ-इस महीने को सब लोग हरिअंश मानते हैं। इस भारतवर्ष में यह सास स्वार्थ और परमार्थ दोनों का देने वाला है ( खान पान, काम काज, रति समागमादि अधिक सुखन्द होते हैं, और यज्ञ कर्मादि भी अधिक होते हैं। विवाह दुरा- गमनादि होना भी प्रारंभ हो जाते हैं ) 1 नदियों और सरो- बरों के किनारे सुगन्धित फूल फूलते हैं। कलहंस और कल हंसिनियाँ प्रेममय होकर कूजती हैं । दिन बड़ा सुखमय होता है, न बहुत शीतल न गर्म । हे प्राणनाय! अच्छे कम के पुण्य से यह ऋतु पाकर अगहन में विदेश जाने की इच्छा न (पूस वर्णन) मूल-शीतल जल, थल बसन, असन शीतल अनरोचक । केशवदास अकाश अवनि शीतल अशु मोचक । तेल, तूल, तामोर, तपन तापन, नव नारी। राज रंक सब छोड़ि करत इनहीं अधिकारी। लघु दिवस दीह रजनी रमन होत दुसह दुस रूस में । यह मन क्रम बचन विचारि पिय पंथ न बूझिय पूस में ॥३३॥ शब्दार्थ-अनरोचक =जो न रुचै । तूल = रुई। मोर= (ताम्बूल ) पान । तपन = सूर्य। तापन =अग्नि। रूस रूठना ।