पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२३३

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शब्दार्थ----युचनः दसवाँ प्रभाव घर पर युवती युवन जोर गहि गांठिन जोरहि । बसन छीनि मुख मांडि, आंजि लोचन तिन तोरहि ॥ पटवास सुबास अकास उड़ि भुवमंडल सब मंडिये। कह केशवदास विलास निधि फागुन कागुन चंडिये ॥३॥ == जवान मनुष्य । जोर गहि = जबर दस्ती पकड़ कर । मुख मांडि= मुख पर काजल इत्यादि लगाकर । तिन तोरहि-तिनका तोड़ती हैं कि इनको किसी की नजर न लगे, व्यंग यह है कि बड़ी सुन्दर शकल है। पटबास- सुगंधित चूर्ण (गुलाल अयोर इत्यादि)। सुवास-सुगं- धित विलासनिधि हे बिलास निधि नायक । कागुन = किस कारण ! फागुन कान छड़िये == फागुन में मुझे किस कारण अकेली छोड़ जायेंगे। भावार्थ-सरल और स्पष्ट है। (नोट)-इस प्रभाव भर में केशव ने केवल 'आक्षेप अलंकार का वर्णन किया है और सब उदाहरण गार रस ही के दिये हैं। इससे यह न समझ लेना चाहिये कि अन्य रसों में आक्षेप अलंकार का प्रयोग नहीं हो सकता। [दसवां प्रभाव समास