पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२३४

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ग्यारहवां प्रभाव (क्रम से अपन्हुति तक १३ अलंकार ) ८-(कम अलंकार) मूल आदि अंत भरि बरणिये, सो क्रम केशवदास । गणना गणना सौ कहन जिनके बुद्धि प्रकास ॥१॥ ( नोट )--केशव कृत यह परिभाषा साफ नहीं है। पर उदाहरणों से ज्ञात होता है कि जिले केशव ने ग्राम अलंकार माना है, उले परवर्ती श्राचयों ने खला' या एकावली' नाम दिया है और यो परिभाषा दी है। किये जंजीरा जोर पद एकावली प्रमाना और जिसे केशय गणना' अलंकार मानते हैं, उसे हाल के प्राचार्य अलंकार ही नहीं मानते। (क्रम के उदाहरण ) मूल-धिक मंगन बिन गुणहिं, गुण सु घिक सुनत न रीझिय । रीम सुधिक बिन मौज, मौज धिक देत जु खीझिय ।। दीबो धिक बिन सांच, सांच विक धर्म न भायें। सु धिक विनु दया, या धिक अरि कहँ आवै ।। श्ररि धिक चित्त न सालई, चित धिक जहँ न उदार मति । मति धिक केशव ज्ञान बिनु, ज्ञान सु धिक बिनु हरि भगति ।।२।। सध्दार्थ-मंगन-मांगना, याचना करना । मौज = चकसीस । क्याधिक "आधे = वह दया किस काम की जो शत्रु इमारे