पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२३६

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प्रिया-प्रकाश (पुनः) मूल-तजहु जगत विन भवन, भवन तजि तिय बिन कीने । तिय तजि जुन सुख देय, सुख सु तजि संपति हीने ।। संपति तजि बिन दान, दान तजि जहँ न विप्र मति । विप्र तजहु विन धर्म, धर्म तजि जहाँ न भूपति ॥ तानि भूप भूमि बिन, भूमि तजि दीह दुर्ग बिन जो बसे । ताजे दुर्ग सु केशवदास कवि, जहां न जल पूरण लसै ॥४॥ शब्दार्थ-मति =मति मान, बुद्धिमान (विप्र का विशेषण )। दीह दुर्ग= बड़ा परकोटा ( रक्षार्थ बड़ो ऊंची चहार दीवारी) भावार्ध --सरल और स्पष्ट है। ९-(गणना अलंकार) (नोट)-इसकी परिभाषा ऊपर क्रम अलंकार की परिभाषा के साथ ही है। वहीं देख लीजिये। इसमें केशव ने एक से दस तक की गणना की वस्तुओं को बतलाया है। केशव के मत के साथही साथ हम यहां धैसेही अन्य शब्दों को भी लिखते जायेंगे। (एक सूचक) मूल-एकै पातम, चक्र रवि, एक शुक्र की दृष्टि । एकै दसन गणेश को, जानति सिगिरी सृष्टि ॥ ५ ॥ , शब्दार्थ-प्रातम ब्रह्म । चक्ररषि सूर्य के रथ का पहिया। शुक्रदृष्टि = शुक्राचार्य की आँख । दसन- दांत । (विशेष -चंद्रमा, भूमि और गजमुक्का.मी।