पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२३७

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२२६ ग्यारहवां प्रभाव (दो सूचक) मूल-लेखनि डंक, भुजंग की रसना, अयननि जानि । गजरद, मुख चुकरेंड के, कक्षाशिखा बखानि ॥ ६ ॥ नदीकूल है, राम सुत, पक्ष, खड़ग की धार । द्वै लोचन, द्विजजन्म, पद, भुज, अश्विनीकुमार ॥ ७ ॥ शब्दार्थ-अयन = उत्तरायन, दक्षिणायन । चुकरेंड = दोमुहां सांप । कक्षाशिखा काकपक्ष, पाटी। रामसुत-कुश और लव । पक्ष = कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष । (विशेष)-कुच, कान, शकटचक्र, नाक के नथने (नासारंध्र),भी। (तीन सूचक) मूल-गंगा मग, गंगेशग, ग्रीवरेख, गुणलेखि । पावक, काल, त्रिशुल, बलि, संध्या तीनि विशेखि ॥८॥ पुष्कर, विक्रम, राम, विधि, त्रिपुर, त्रिवेणी, बेद । तीनि पाप, पारताप, पद ज्वर के तीन, सखेद ॥६॥ शब्दार्थ-गंगामग = गंगा के तीन पथ ( इसी से गंगा त्रिलोता या त्रिपथगा कहलाती हैं ) गगेशद्दग= शिव नेत्र । गुण=सत, रज, तम । पावक = अग्नि तीन दक्षिणाग्नि, गार्हस्पत्ति, श्राहव- नीय । काल = भूत, भविष्य, वर्तमान । त्रिशूल -त्रिशूल के तीन फल ! बलि-त्रिबली की रेखा तीन । पुष्कर = पुष्करक्षेत्र के तीन कुंड ( बुद्धपुष्कर, शुद्धवाय, ज्येष्ठकुंड)। विक्रम = तीन बल (तन, मन, धन)। राम- नीन ( परशुराम, दासरथीराम, बलराम)। विधि-क्रिया (वेद विधि, लोकविधि, कुलविधि)। वेद = ऋगु, यजुर,