पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२३८

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प्रिया-प्रकाश साम । ताप = दैहिक, दैविक, भौतिक । परिताप तीन (जैन मत के अनुसार-मन परिताप, बलपरिताप, बीर्य परिताप)। ज्यरपद - ज्वर के नीन पैर ( वैद्यक सेवात, पित्त, कफ) (विशेष )-लोक ( स्वर्ग, मर्त्य, पाताल ), कांड (कर्म, झान, भक्ति , देव (निदेव-ब्रा, विष्णु, महेश ), गणेश नेत्र, कालिका नेत्र भी तीन हैं। (चार सूचक) मूल-बेद, बदन विधि, बारिनिधि, हरिबाहन, भुज चार । सेना अंग, उप य, युग, आश्रम, बरण बिचारि ॥१०॥ सुरनायक-बारन-रदन, केशव दिशा बखानि । चतुरब्यूह रचना चमू चरण, पदारथ जानि ॥ ११ ॥ शब्दार्थ-वेद मृगु, यजुर, साम, अथर्व । वदन विधि- ब्रह्मा के मुख । वारिनिधि = समुद्र (चारो दिशा के ) हरि- बाहन == कृष्ण के रथ के घोड़े। हरि शुज = विष्णु के हाथ। सेना अंग-रथ, हाथी, घोड़ा पैदल । उपाय = साम, दाम, दंड, भेद । सुरनायक बारन रदन = ऐरावत के दंत । चतुर ब्यूह रचना घम् = सेना की चार प्रकार की न्यूह रचना ( शकदल्यूह कौंच ब्यूह, धनुष ब्यह, चक ब्यूह ) | चरण छन् के चार चरण । पदारथ = धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष । (विशेष)-अवस्था = (जाग्रत, वन, सपोति, तुरीय)। फल - धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष । धाम - बद्रीनाथ, जगन्नाथ, रामेश्वर, द्वारका । वर्ग- चतुर्वग (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष )। (नोट)-वेद तीन भी माने जाते हैं और चार भी। समुद्र---- चार भी और सात भी। दिशा=चार भी, पाठ भी और दस