पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

--कवल ग्यारह प्रभाव २३१ भी। 'चतुथूह' का अर्थ कोई २ कृष्णा, बलराम, प्रधुम्न और अनिरुद्ध, तथा कोई राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रन भी लेते हैं। (पांच सूचक) मूल पंडुपूत, इंद्रिय, कवल, रुद्रबदन, गति, बाण । लक्षण पंच पुराण के, पच अग अरु प्राण ॥ १२ ॥ शब्दार्थ थंच कोल( भोजन करने समय पहले पांच कौर खाये जाते हैं (तुलसी)-'पंच नवल करि जेवन लागे । गति-मुक्ति-सालोक्य, सामीप्य, सारूप्य, सायुज्य, सारिष्ट्र पंच छुराणलक्षण = सृष्टि की उत्पत्ति, लय,देताओं की उत्यत्ति और बंश परंपरा, मन्वन्तर, मनु-चंश के विस्तार का वर्णन । पंच अंग-तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण। पंच- प्राण । प्राग, अपान, ब्यान, उदान और समान । मृल -पचवर्ग, तरुपच, अरु पच शब्द परमान। पंच संधि, पंचाग्नि मान, कन्या पांच समान ।। १३ । शब्दार्थ-वर्ग = क, च, ट, त और प। पंचतरु - ( स्वर्ग के पांच वृक्ष ) मंदार, पारिजात, संतान, कल्पक्ष और हरिच- न्दन । पंच शब्द = १-(मंगल सूचक) तंत्री, ताल, झांझ, नगाड़ा और तुरही। २-(व्याकरण से ) सूत्र, वार्तिक, माथ्य, कोश और कवि प्रयोग। ३---( पंचध्वनि) बेदध्वनि, बंदी- ध्वलि, जयध्वनि, शंखध्वनि और निशालध्वनि ! पंचसधि: (व्याकरण में ) स्वरसंधि, व्यंजनसंधि, विसर्गसंधि, स्वादि- संधि और प्रकृतिमाव । पंचाग्नि-अन्वहार्य, पचन, गार्हपत्य, आहवनीय और सभ्य । पंचकन्या-श्रहल्या, दंपदी, कुंती, तारा और मंदोदरी।