पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२४१

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ग्यारहवां प्रभाव प्रट राग-भैरव, मालकौस, हिंडोल, दीपक, श्री, मेघ । (पुनः) मल-षटमाता षट बदन की. घट गुण बरनहु मित्त । आतताइ नर षट गनहु. षटपद मधुप, कवित्त ॥१६॥ शब्दार्थ-पटमाता-कृतिका नक्षत्र के ६ तारे। षट गुण = परराष्ट्र संबंधी नीति के छः अंग-संधि, विग्रह, मान, आसन, द्वैधीभाव और संश्रय । षट आतताई = आगलगानेवाला, बिषदेनेवाला, शस्त्र प्रहारी, भवनहर्ता, क्षेत्र हर्ता, स्त्री हर्ता। (विशेष)-ज्वरबाहु, त्रिशिरा नेत्र भी छः के बोधक हैं। (सात सूचक) मूल-सात रसातल, लोक, मुनि, द्वीप, सूरहय, चार । सागर, स्वर, गिरि, ताल, तरु, अन्न, ईति, करतार ॥१७॥ शब्दार्थ-सात रसातल = तल, अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल, पाताल! - भूः, भुवः स्वः, महा, जन, तप, सत्य। मुनि = ( वैदिक)-मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्य, पुलह, तु, बशिष्ठ । द्वीप जम्बू, प्लक्ष, शाल्मलि, कुश, कौंच, शाक, पुस्कर । सूर्य के घोड़े धार = रबि, सोम, मंगल, बुद्ध, गुरु, शुक्र, शनि । सागर = क्षीर, क्षार, द्धि, मधु, वृत, सुरा, इक्षुरस स्वरस, री, ग, म, प, ध, नि 1 1