पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२४६

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प्रिया-प्रकाश इस पृथ्वी पर एक अभूतपूर्व राजा हैं, क्योंकि वे पंच तत्व से यनी सृष्टि के रक्षक हैं। (पुनः) मूल-दरश न सुर से नरेश सिर नावै नित, पट दरशन ही का सिर नाइयतु है । केशोदास पुरी पुर पुंजन को पालक, पै सात ही पुरी सों पूरो प्रेम पाइयतु है ।। नाइका अनेकन को नायक नागर नव, अष्ट नायकान ही सो मन लाइयतु है । नन्नधाई हारे को भजन इन्द्रजीत जू को, दश अवतार ही को गुन गाइयतु है ।। २३ ।। भावार्थ-राजा इन्द्रजीत जू के सामने देव सम राजा 'सिर नवाते हैं, पर वह उनकी ओर देखता तक नहीं, केवल षट दर्शन ही को अपना सिर नवाता है। वह अनेक पुरियों और भावों का पालक है, पर उसके चित्त में सात रियां का ही पूर्ण प्रेम है। वह अनेक स्त्रियो का चतुर और युवा 'पति है, पर केवल अनायिकाओं पर ही मन लगाता है (नायिका भेद के अन्धों में अनायिकायों के बर्णन में ही उनका मन लगता है) के हरि का भजन मयही प्रकार से करते हैं, पर दशौ अवतारों का गुण गाते हैं । (नोट)-ऊपर के दोनों कवित्तों में गणमा द्वारा तो हम कोई चमत्कार नहीं जान पड़ता, हा विरोधाभास द्वारा कुछ चमत्कार पाता है।