पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ग्यारहवाँ प्रभाव २३१ कहिये कह केशव नैननि सो बिन काजहिं पावक पुंज पियो । सखि तू बरजै अरु लोग हँसैं सब, काहे को प्रेम को नेभ लियो॥२८॥ शब्दार्थ-दालकते = बालकपन से । तालो अघोलो क्यों कियो जात = ऐसा कैसे हो सकता है कि उससे न बोलू। कहि तू ही कह ( बतला) पायक पुश पियो उसे न देख कर अलते हैं। “काई को लियो = यह बात कह कर सब लोग भावार्थ-वियोग की बात सुनते ही हृदय फट जाना चाहता है। तू ही बतला कि जिसके साथ बालपन से मिलकर खेल करती रही उससे कैसे न छोलू,। नेत्रों को मैं क्या कई, इन्होंने तो ऐसी वानि ली है कि अकारण ही जला करते हैं ( उसे न देखकर )हे सखी तू मना करती है कि उससे मत बोलाकर, और "सक्यों किया” कहकर सब लोग भी हलते हैं ( पर मै तोड नही सकती) (नोट)-अपने प्रेष भाव झा नि का वर्णन कर विधा, अतः सालंकार है। परिभाषा "पनिषद सिदि जाय जहर इतने ही शब्द काम के हैं। १५-- श्लेषालंकार) मूल-दोय तीनि अरु भांति बहु आनत जामें अर्थ । श्लेष नाम तास कहत. जिनकी बुद्धि समर्थ ॥२६॥ भावार्थ-तीन वा अधिक प्रकार के अर्थ जिसमें निकलें वह श्लेष है। { नोट )-संस्कृत साहित्य में इस लेझार की अधिक प्रतिष्ठा है, अतः उसमें इसकी अधिक भरमार भी है। 'राध पांच-