पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२५०

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प्रिया-प्रकाश घीय' नामक एक महा काव्य ही इस अलंकार में लिख डाला गया है। हिन्दी वालों ने भी इसका यथोचित सम्मान किया है। केशव ने तो इसके लिखने में कमाल कर डाला है। इस अलंकार के लिखने में क्षेशन की समता कोई भी हिन्दी कवि नही कर सका। (दो अर्थ का श्लेष) मूल-धरत धरणि, ईश शीश चरणोदकान, चतुरमुख सब सुख दानिये। कोमल अमल पद कमला कर कमल, लालित, बलित गुरण, क्यों न रानिये ।। हिरणकशिपु दानकारी प्रहलाद हित, द्विजपद उरधारी बेदन बखानिये। केशोदास दारिद दुरद के बिदारिचे को, एकै नरसिंह के अमर सिंह जानिये ॥३०॥ शब्दार्थ-(नरसिंह पक्ष)-ईश = महादेव । बतुरशुख ब्रह्मा । लालित सेवित । दानकारी- खंडन कर्ता, हन्ता । दुरद - हाथी। भावार्थ-श्री सिंह जी दरिनसपी हाथी को मारने में समर्थ हैं। ये कैसे है कि पृथ्वी को धारण करते हैं (*च्छरूप से) और उनके चरणोदक को महादेव जी शीश पर घर है, और उनको ब्रह्मा जी सर्व सुख दानी बतलाते हैं। जिनके कोमल अमल चरण लक्ष्मी के कर कमलों से सेवित हैं, जो अनेक गुण युक हैं, उनको हृदय में क्यों नहीं लावे (हदय से उनका