पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२५२

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प्रिया-प्रकाश (तीन नर्थ का श्लेष) मूल-परम विरोधी अविरोधी वै रहत सब, दानिन के दानि, कवि केशव प्रमान है। अधिक अनंत आप, सोहत अनंत संग, अशरण शरए, निरक्षक निधान है हुतमुक हित मति , श्रीपति बसत हिय, भायत है गंगाजल, जग को निदान है। केशोराय की सौं कहैं केशोदास देखि देखि, रुद्र की समुद्र की अमरसिंह रान है ॥३१॥ शब्दार्थ-(रुद्रपक्ष)-परम विरोधी अग्नि, जल, अमृत, गरल इत्यादि अथवा सर्प मयूर, सर्प यूपक, सिंह वृषभ इत्यादि ( शिव की समाज के) अनंत= शेष नाम । निरक्ष= अरक्षित। क = सुख । हुतभुक अग्नि । निदान आदि कारण । सौ-सौगंद, शपथ । भावार्थ-परम विरोधी जीव वा बस्तुएं जिसके प्रताप से मित्र होकर एकत्र रहते हैं ( शिव की समाज में सर्प, मयूर, भूषक, वृषभ, सिंहादि विरोधी जीव, तथा शिव के अंग में गंगा, अग्नि, सुधाधर और विप इत्यादि बस्तुएं ), जो बड़े बड़े दानियों के भी दानी हैं ( देवताओं को भी बरदान देने हैं) और जो नारायण के सम्झे कवि हैं ( ईश्वर के गुण सदा गाते हैं)। आप खुद अनंत से भी अधिक हैं, पर अनंत (शेष ) को साथ रखते है, अशरण के शरण और अरक्षित जीवों के लिये सुख के भंडार हैं। अग्नि के हित पर बुद्धि रखते हैं ( यज्ञ,