पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२५४

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२४६ प्रिया-प्रकाश भी शरण (सुरक्षित रहने का स्थान ) है। और जो अरक्षित अल का भांडार है (जो जल कहीं नहीं समाता वह समुद्र में रहता है ) जो बड़वाग्नि का हितू है, नारायण जिसके भीतर बसते हैं ( अनंत कोटि ब्रह्मांडो का नायक जिसमें बसता है), जिसको गंगाजल बहुत भाता है (गंगाजी समुद्र की अति प्रिय पत्नी मानी जाती हैं ) और जो जगत का आदि कारण है ( बिना जल तत्व के जंगम जीवों की उत्पत्ति नहीं हो सकती)। शब्दार्थ-(अमरसिंह राना पक्ष) परम विरोधी = 'शत्रु । प्रमान-( प्रमान) सबसे अधिक प्रतिष्ठा वाले। अधिक (अ+धिक) जिसको कोई धिक्कार न सके, अनिद्य । अनंत=(अन + अंत) जिसका कोई अंत (भेद ) न पा सके। निरक्ष अरक्षित । क-सुख । निधान-प्रवीण । युतभुक: देवता। भावत है गंगाजल =गंगाजल के समान शुद्ध सोहते हैं। जग को निदान है-जग का अंत है अर्थात् संसार में सबसे बढ़ कर प्रतिष्ठित हैं, उनसे बढ़कर कोई भी प्रतिष्ठा पात्र नहीं (क्योकि श्रीरामचन्द्रजी के वंशज हैं)। केशोरायः नारायण । सौं- शपथ । भावार्थ--राना अमरसिंह जी कैसे हैं कि जिसके यश और प्रताप के प्रभाव से उनके परम विरोधी शत्रु भी विरोध छोड़ कर उनके वशवर्ती होकर रहते हैं, जो दानियों के भी दानी हैं (जिसको दान देते हैं वह स्वयं इतना धनी हो जाता है कि औरों को देने लगता है) जो नारायण के गुण कवि बत् वर्णन करते हैं और जिनकी प्रतिष्ठा अति उत्कृष्ट है । जो अनिंद्य हैं, और जो स्वयं ऐसे गंभीर हैं कि असंख्य जन