पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२५५

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ग्यारहवाँ प्रभाव साथ रहते हुए भी कोई जिनका भेद नहीं जान सकता। जो अशरण के लिये शरण और अरक्षित जनों के लिये सुख का भांडार हैं । देवताओं के हित ( यज्ञादि ) में जिनकी मति है ( यज्ञादिक में मन लगाते हैं), नारायण जिनके हृदय में बसते हैं ( ईश्वर के परम भक्त हैं ), जो गंगाजलवत् शुद्ध हैं, संसार में सर्वाधिक सम्मानित है ( हिन्दू कुल सूर्य कह- लाने हैं)। ईश्वर की शपथ है, केशव उनको देख देखकर कहता है कि ये राना अमरसिंह हैं या छ है या समुद्र हैं। (चार अर्थ का श्लेष) मूल-दानवारि सुखद, जनकजातनानुसारि, करषत धनु गुन सरस सुहाये हैं। नरदेव क्षयकर करम हरन, खर, दूषन के दूषन सु केशोदास गाये है। नागधर प्रियमानि, लोकमाता सुखदानि, सोदर सहायक नवल गुन भाये हैं । ऐसे राजा राम, बलराम, कैधों है अमरसिंह मेरे उर भाये हैं ।। ३२॥ शब्दार्थ-(राजारामचंद्र पक्ष)-दानवारि = इन्द्र । जातनानुसार = जनक की पीड़ा के अनुसार । सरस नर-देव-क्षयकर = रावण । खरदूषन के दूपन == खर और दूषण नामक राक्षसो के विनाशक । नागधर = शिव । लोकमाता- लक्ष्मीजी। सोदर भाई । कै परशुराम, जनक