पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२५६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२४८ प्रिया-प्रकाश भावार्थ-केशवजी कहते हैं कि मेरे विचार में ऐसा श्राता है है कि ऐसे (इन ) गुणों से युक्त या तो राजा रामचंद्र हैं, या बलरामजी हैं, या परशुराम जी हैं, या राना अमरसिंहजी हैं। राजा रामचंद्र जी इन्द्र जी को सुख देने वाले हैं, जनक राजा को जब प्रतिशा भंग की पीड़ा हुई तब उनकी प्रतिज्ञा के अनुसार धनुष की प्रत्यंचा को खीचते समय जिनकी बड़ी सुन्दर शोभा हुई थी। नर और देवताओं को क्षय करनेवाले रावण के कर्मों के हरनेवाले और खर तथा दूषण नामक राक्षसों को मारने वाले हैं, केशव कहते हैं कि जिनके गुणा- नुवाद उनके दातों द्वारा गाये गये हैं, शिव को जो अपना प्रिय मानते हैं, लल्मी को सुख देने वाले हैं, भाई जिनके सहायक हुए ( राजाओं के भाई सहायक नहीं होते, पर इनके भाई सहायक हुये ) ऐसे मनभावन नवीन गुण जिनमें हैं ऐसे राजा रामचंद्र हैं। शब्दार्थ-(बलराम पक्ष)-दानवारि श्रीकृष्णजी। जातनानुसारि=पिता की यातना में उनके अनुकूल कार्य करने वाले (देवकी के गर्भ से रोहणी के गर्भ में चले जाने वाले) धनु = गोधना करपत धनु = गोधन को खींचने फिरते हैं (जहां तहां गायें चराये फिरते हैं) गुन सरस सुहाये हैं जोसुन्दर गुणों से शोभित हैं। नरदेव राजा नरदेव क्षयकर रुक्मी नामक राजा को बलदेवजी ने चौपर खेलते समय मारा था। करस हरन = कर्म को नाश करने वाले (मोक्षदाता)। खर - धेनुक नामक राक्षस जो गदह का शरीर धरकर ताल बन में बलराम से लड़ा था । दूधजमारने वाला । नागधार सर्पका शरीर (प्रभासक्षेत्र में सर्प के शरीर से समुद्र में चले गये, क्योंकि