पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२५७

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ग्यारहवाँ प्रभाव शेष के अवतार थे)। लोकमाता-लौकिक माता अर्थात् यशोदा, रोहिणी देवकी इत्यादि । सोदर सहायक कृष्ण के सहायक (कुवलया तथा कंस बध में)। नवल-सदा नवीन अवस्था के रहते है। गुणसौन्दर्यादि। भावार्थ-बलरामजी कैसे हैं कि कृष्ण को सुख देने वाले हैं, पिता को पीड़ा निवारणार्थ उनके अनुकूल कार्य करने वाले हैं, गोधन चराते फिरते हैं, और जिनमें और भी अनेक रसीले गुण हैं । दुष्ट राजाओं के बध करने वाले है, मोक्ष दाता हैं, धेनुक राक्षस के अत्याचारों के विनाशक हैं, केशव कहते हैं कि जिन का यश दासोलारा गाया गया है, जिनको नाग का शरीर प्रिय है, लौकिक माता को सुख देने वाले है, भाई के सहायक हैं, सदैव नवल व्य वाले हैं, और मन को भानेवार: सौंदर्य माधुर्य गुण भी जिनमें हैं, ऐसे बलरामजी हैं। शब्दार्थ-(परशुराम पक्ष)-दानवारि सुखद दान देते समय संकल्प का जल जिले मुखद है। जनकजातनानुसारि = पिता जमदग्नि के कष्ट के अनुसार। नरदेव शयकर राजाओं के क्षयकारी (क्षत्रिय विनाशक)। करम हरन = कर्स के विना- शक ( मोक्षदाता ) खर दूषन के दूधन = तीक्षण दोषों (महा पापों) के नाशक । नार-शिव। लोकमाता पार्वनी । सोदर सहायक न= माई जिसके सहायक नहीं (जो अकेला ही सब कार्य करता रहा) बलगुन भाये है जिसका बल और जिसके गुण सबको भाये हैं। भावार्थ-परशुराम कैसे हैं कि ( दान संकल्प का जल जिसे सुखद है (जितना ही अधिक दान दें उतना ही अधिक सुख हो-२१ वार पृथ्वी वियों को दी ), पिता की पीड़ा के अनु-