पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२५९

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२५२ निया-प्रकाश स्मरण किया। नारायण हंसरूप धरकर प्राथे और वादविवाद में सनकादिक को परास्त करके ब्रह्मा को प्रसन्न कर दिया । सगील = सामवेदादि । सुखद सकति - सुख देने वाली शक्ति अर्थात् सरस्वती। समर सनेही (सर) का है मित्र जिसका-झाम ही की सहायता से मझा जी सुष्टि की रचना में सुफल हैं। बहुबदन = चार मुख वाले हैं। द्विजराज -- हंस । राजै द्विजराज पद अषण विभल = जिसके पैर हंस पर भूषणावर राजते हैं, हम लिखकी सबारी है। कमलासन = कमल ही आसन है जिसका । परमार प्रिय - लोपरि उत्कृष्ट दारा जिसे प्रिय है अर्थात प्रमाणी जिस प्रिय है। भावार्थ-लोकनाथ (बा) ऐसे है कि एरमा प्रकाशवत् उनका शारीर है, नाराया के हसरतार और निज भानस सात पुत्र सनकादि की करतूत ( वादविवाद ) सुनकर सुरली होते हैं, संगीतमय बंदी के गिज हैं, जिओर दुधिमान हैं। मुखदशक्ति सरस्वती का धारण करने वाले हैं, और कामदेव उनका मित्र है। बहुत है ( चार मुख वाले हैं ), उनका यश समको विदित है, केशब ( नारायण) के दास है अतः उनका गुण गाया करते हैं। उनके पैर हंस पर भूमणवन शोभा पाले हैं, जल पर बैठते हैं यह प्रत्यक्ष ही है, और अति उत्कृष्ट दाराप्रामी) ही उन्हें प्रिय है। शब्दार्थ-(त्रिलोकनाथ-या पक्ष)-सजा= सूर्यपुत्री यमुना (कृष्ण की एक पटरानी)।त गुण = (ता गुण ) उत्ससी प्रशंसा। (नोट- को “ला' मान लेना ह्रस्व को दीर्ब मान लेना कवि प्रयानुसार दोष नहीं। संगीत भीत: गान कला के मित्र हैं। विदुध बयानिये = देवता जिनकी E