पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२६२

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ग्यारहवाँ प्रभाव तो लक्ष्मी जी उनकी आज्ञा के अनुसार जहां वे कहते हैं वहां निवास करती हैं ) और अकिंचन होकर भी बड़े मानी हैं किसी से कुछ मांगते नहीं। शब्दार्थ-(रघुनाथ पक्ष)-मावत = भत्ता लगता है। परम हंस जात - परमहंसों का समूह ( सनकादिक अथवा कोई भी साधु समूह ) । सुबह सुनि सुख पावत = साधुनों के गुण सुनकर सुख पाते हैं, अपने भक्तों के गुण सुनकर सुखी होते हैं (प्रमाण तुलसी कृत विनय पत्रिका में ) "सकृत प्रणाम करत यश भावत सुनत कहत फिरि गाउ"। संगीत मौत - संगीत कला प्रिय है जिनको । सुखद शक्ति पाहादिनी शक्ति का अवतार अर्थात् सीता जी। समर सनेही युद्ध प्रिय हैं। बहु बदन विदित यश = वह शुद्ध वाले रावण को मारने से जिनका यरा विदित हुआ है। के गोशाल मानिये = कंश कषि कहता है कि दास जन गाने हैं। द्विजराजपचंद्र की पदवी । ( 'रधुनाथ' शब्द से स्पष्ट नहीं होता कि कौन राजा, कोकि रघुवंश में अनेक राजा नाहर हैं, अतः केशवदास कहने हैं कि वे रघुनाथ जिनके नाम के साथ 'चंद्र' की पदवी (Title) लगी हुई है अर्थात् "राम" कमलासन प्रकास - जो लशी के साथ प्रकाशित हैं, जो अतिथी प्रसिद्ध हैं। 'सन' शब्द का अर्थ हैं "साय या संग" | परदार निय = अति उहिष्ट दारा के प्रिय, परम सती सीता के पिथ- तम हैं। भावार्थ-श्री रामचन्द्र जी कैसे हैं कि उनको घरमाईलों का समूह (शिव, शुक, सनकादि परमहंस दृसि धाले जन ) खूप भाता है, उनकी प्रशंसा सुनकर सुखी होते हैं, संगीत के प्रेमी १