पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२६४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ग्यारहवा प्रभाव २५७ हैं, बड़े लक्ष्मीवान हैं और शत्रु की भूमि के इच्छुक रहते हैं । (सूचना) किसी किसी प्रति में अमरसिंह के स्थान में राम- सिंह पाठ है । रामसिंह जी इन्द्रजीत के जेठे भाई थे जो चंदेरी में रहा करते थे। इस छंद के, लोग और भी कई प्रकार के अर्थ करते हैं, पर वे अर्थ हमें नहीं अँचे। उन्हें लिखकर पाठकों को भ्रमजाल में डालना हमें पसंद नहीं । परिभाषा के अनुसार श्लेष अलंकार का ज्ञान करा देना ही हमारे लिये अलम् है। (श्लेष के भेद। मूल-तिन में एक अभिन्न पद, अपर भिन्न पद जानि । लेष सुबुद्धि दुभेद के केशवदास वखानि ॥३४॥ भावार्थ हे सुबुद्धि पाठक ! श्लेष दो प्रकार का होता है एक अभिन्नपद दूसरा भिन्न पद। (अभिन्न पद का वर्णन) (सूचना)-परिभाषा केशव ने नहीं दी, पर उदाहरण से ज्ञात होता है कि भिन्न पक्षो के त शिलष्ट शब्दों के अर्थों में भिन्नता न श्रावै अर्थात जो अर्थ पक्ष में लिया गया है वही अर्थ अन्य में भी लग सके, उस अभिजपद श्लेष कहते हैं। (उदाहरण) मूल-सोहति सुकेशी मंजुधापा रति उरबसी, राजाराम मोहिबे को सूरति सोहाई है। कलरव कलित सुरभि राग रंग युत, बदन कमल षटपद छवि छाई है। भृकुटी कुटिल धनु, लोचन कटाक्ष शर, भेदियत तन अति सुखदाई है।