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प्रिया-प्रकाश


जाता है (२) शिव । गौरी-(१) राग विशेष जो संध्या को गाया जाता है (२) पार्वती। सुरतरंगिनी-(१) सातो सुरों की नदी, जिसमें सातो सुर भरे हो, जो सातो सुरों में गा सकती हो (२) गंगा। [भावार्थ -देखो, नयनविचित्रा चंद्रकला सी शोभती है, क्योंकि जैसे चंद्रकला शिव, पार्वती और गंगा से युक्त है वैसे ही नयनविचित्रा भी भैरव और गौरी रागों से युक्त है तथा सुरों की तो सरिता ही है। मूल-नयन बयन रतिसयन सम, नयनविचित्रा नाम । जयनशील पति मयन मना सदा करति विश्राम || ५०॥ शब्दार्थ-रतिसयन - रति समय की चेष्टाय । जयनशील - जीतने वाली। भावार्थ-नयविचित्रा नानी पातुरी के नेत्र और बचन सुरति समय की चेष्टाओं के समान हैं अर्थात् साधारण समय में भी यदि कोई उसके नेत्रों को देखे वा उसके बसन सुने तो उसे सुरति समय की चेष्टाओं का सा मज़ा श्राजाय । और वह अपने अदन समान पति के मन को जीतने वाली है और उसके मनही में सदा विश्राम करती है अर्थात् सदैव पति के मन में बसती है। मूल-नागरि सागर सग की. सोहत तानतरंग। पति पूरन शशि दरस दिन, बादत सान तरंग ५१॥ भावार्थ येतानतरंग मानी पातुर बड़ी चतुरा और रागों की सागर है अर्थात् सब गियां गा सकती है। जिस