पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२७२

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ग्यारहवाँ प्रभाष सुनौ देवदेव बलदेव, कामदेव प्रिय, केशोराय का सौं तुम कहो तैसी जैसी है। बारुणी को राग होत सुरजु करत अस्त, उदौ द्विजराज को जुहोत यह कैसी है ॥४२॥ शब्दार्थ-भगवंत-किरण धारी। दोऊ = सूर्य और चंद्रमा । दुहुन के ऋषि बाप = सूर्य के पिता कश्यप, चंद्र के पिता अत्रि । सुदेसी सुन्दर । देव देव =यह 'बलदेव' का विशेषण है। कामदेव प्रिय-यह 'केशवराय' का विशेषण है। केशव- राय =कृष्णजी। सौं= शपथ । तुम" है = बलदेवजी प्रसिद्ध शराबी थे, अतः प्रश्नकर्ता उन्हें अनुभवी समझ कर उन्हीं से पूंछता है कि कृष्ण की शपथ करके तुम्ही यथार्थ बात कही। बारुणी= (१) पच्छिम दिशा (२) शराब। रागहोत = (१) लाल होते ही (२) अनुराग पैदा होतेही। सूर = (१) सूर्य (२) शूरपुरुष, शूरवीर क्षत्री। दिजराज = (१) चंद्रमा (२) ब्राह्मण । अस्त (१)= डूबना (२) नष्ट होना । उदौ- (१) उदय होना (२) बढना । भावार्थ-दोनो ( सूर्य और चंद्रमा) किरणधारी, प्रकाशवान और बली हैं, दोनों का वर्णन वेद में है, दोनों पुन्य पाप जानते हैं, दोनों ऋषि सन्तान हैं, दोनों सुन्दर हैं। हे देवदेव बलदेव जी ! तुम्हें काम प्रिय कृष्ण की शपथ है तुम्ही यथार्थ बात बतलाओ कि पच्छिम दिशा में लालिमा छातेही सूर्य का अस्त और चंद्रमा का उदय क्यों होता है ( अथवा शराब का अनुराग होते ही शूरक्षत्री का विनाश और ब्राह्मण की बढ़ती हो यह कैसी अद्भुत बात है)।