पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२७३

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प्रिया-प्रकाश ( व्याख्या)-अपर के दो चरणों में जो विशेषण सूर्य और चंद्रमा के हेत हैं वे क्षत्री और ब्राह्मण के लिये भी हो सकते हैं। "राग होत" क्रिया एक है, पर उसके फल दोनों के लिये (सूर्य और चंद्रमा के लिये) परस्पर अति विरुद्ध है अर्थात् एक का 'प्रस्त' दुसरे का 'उदय', अतः इसकी परिभाषा यों होगी कि:- "जिस श्लेष में एक क्रिया के दो विरुद्ध कर्म (फल) हो, उसे विरुद्ध कर्माश्लेष कहेंगे। ४-(नियम श्लेष) मूल-वैरी गाय ब्राह्मन को कालै सब काल जहां, कवि कुल ही को सुबरणहर काज है । गुरु सेजगामी एक बालकै विलोकियत, मातंगनि ही को मतवारे को सो सान है। अरि नगरीन प्रति होत है अगभ्या गौन, दुर्गन ही केशोदास दुर्गति सी आज है । राजा दशरथ सुत राजा रामचंद्र तुम, चिरु चिरु राज करौ जाको ऐसो राज है ॥ ४३॥ (नोट )--इसका अर्थ हम केशवकौमुदी में लिख चुके हैं (देखो प्रकाश २७ छंद नं०३) ( व्याख्या)-इसमें सुवरणहर, गुरुसेजगामी, मतवारे, अगम्यागौन, दुर्गति इत्यादि शब्द श्लिष्ट हैं। इनके प्रचलित अर्थों को नियमन करके एक विशेष अर्थ में बद्ध (सीमित) कर दिया गया है, अतः इसका नाम केशव ने नियम श्लेष