पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२७६

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ग्यारहवा प्रभाव लौटा दिया। इससे कृष्ण ने यह इशारा किया कि रात्रि में जब कमल सकुचित हो जाते हैं मिलूगा। बस इसी प्रकार का कथन सूक्ष्मालंकार है। (नोट)-एक हस्त लिखित प्रति में इस उदाहरण के स्थान पर नीचे लिखा सवैया मिलता है। ल-बैठी हुती वृषभानु कुमारि सखीन के मंडल मध्य प्रवीनी। लै कुम्हिलानो सो कंज परी जू कोऊ इक ग्वालिनि पायें नर्बानी । बंदन सौ छिरक्यो वह वाकहँ पान दये करुना रस भीनी । चंदन चित्र कपोल बिलेपि कै अंजन ऑजि बिदा करि दीनी ॥ ( ब्याख्या )-इसमें भी वही बात है। सखी मंडल में बैठी हुई राधिका के पास एक नबीन ग्वालिल आई वह हाथ में एक कुम्हिलाया हुया कमल लिये हुए राधिका के पैरों पड़ी जिसका अर्थ यह हुआ कि कृष्ण का कमल मुख तुम्हारे विरह में मुरझा रहा है, मैं पैरों पड़ती हूं तुम उनसे मिलो। राधिका ने मुरझे कमल पर भिर छिड़का, ग्वालिन को पान दिया, एक कपोल पर चंदन लगाकर एक आंख में अंजन लगाकर बिदा कर दिया इससे यह सूचित किया कि बंदन सो हिरक्यो = मेरा अनुराग कृष्ण पर है। पान दये = मैं अपना हाथ (पाणि ) उन्हें देती हूँ। चंदन कपोल विलेपिक = आधी रात तक चांदनी है। उसके अस्त होने पर। अंजन आजि विदा कीनी = अंधेरे समय में मिलूगी।