पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२७९

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२७२ प्रिया-प्रकाश सूरज समान सोम मित्र इ अमित्र कह, सुख दुख निज उदै अस्त प्रगटतु है ॥ ५० ॥ शब्दार्थ=न अटतु है = नहीं समाता । दिन निघटतु है समय वोतता है। पुहुमी= पृथ्वी । सोम-चंद्रमा । भावार्थ-वे ही राजा चिरकाल तक राज करते हैं, वेही अच्छे राजा गिने जाते हैं, उन्हीं का यश संसार में नहीं समाता, जीवन जन्म उन्ही के धन्य हैं, और तो पशु समान दिन बिताते हैं, दही प्रसिद्ध राजा कहे जाते हैं, उन्हीं की प्रभुताई को सव लोग स्मरण करते हैं, जो सूर्य और छमा के समान अपने उदय और अस्त से अपने मित्रों और अमित्रों को सुख और दुःख देते हैं। (व्याख्या)-इसमें सूर्य और चंद्रमा के उदय और अस्त से यह शिक्षा दी गई है कि (१)-उदय वही अच्छा है जिससे मित्रों को सुख और शत्रुओं को दुःख हो ( यह अच्छे काम से अच्छी शिक्षा हुई ) और (२)-अस्त वही अच्छा है जिससे मित्रों को दुःख और शत्रुओं को सुख हो ( यह छुरे काम से बुरी शिक्षा हुई) १६-( ऊर्जालंकार) मूल-तजै न निज हंकार को, यद्यपि घटै सहाय । ऊर्ज नाम तासों कहैं, केशव सब कबिराय ॥५१॥ (यथा) मृल-को बपुरा जो मिल्यौ है बिभीषण बै कुल दूषण जीवैगो कोलौं ।